Monday, March 7, 2022

जाने कैसा वक्त है ?

 जाने कैसा वक्त है ?

वक्त का पता भी नही चलता 
सुबह होती है , साम होती है 
जिन्दगी युही तमाम होती है 
सोचता हूँ खुद में समाहित कर लूँ 
या उन में समाहित हो जाऊ 
जाने क्यों हर बात पर आहत हो जाता हूँ 
इतना कुछ है जो कहना है तुम्हे,
तुम मिलो तो, तो तुम्हे बताऊ 
तुम क्या थी मेरे लिए ये बताऊ 
क्या आस है तुमसे ये समझाऊँ |
अब तुम्हारी यादों ने भी तनहा कर दिया है 
कि अक्सर भीड़ में साथ छोड़ जाती है 
भीड़ बाहर होती है और तनहा अंदर से होता हूँ
वैसे अच्छा ही किया 
जो छोड़ कर चली गयी हमको, 
सायद साथ होती भी तो, 
हम साथ नही होते,
इस वेरोजगार के सहारे कब तक रहती ?
एक दुसरे से कब तक आस करते ?
उस वक्त मै भले ही न समझ पाया 
पर मै चाहें जहाँ भी रहूँगा 
तुम सही थी ये हर बार कहूँगा |

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