Monday, March 7, 2022

जाने कैसा वक्त है ?

 जाने कैसा वक्त है ?

वक्त का पता भी नही चलता 
सुबह होती है , साम होती है 
जिन्दगी युही तमाम होती है 
सोचता हूँ खुद में समाहित कर लूँ 
या उन में समाहित हो जाऊ 
जाने क्यों हर बात पर आहत हो जाता हूँ 
इतना कुछ है जो कहना है तुम्हे,
तुम मिलो तो, तो तुम्हे बताऊ 
तुम क्या थी मेरे लिए ये बताऊ 
क्या आस है तुमसे ये समझाऊँ |
अब तुम्हारी यादों ने भी तनहा कर दिया है 
कि अक्सर भीड़ में साथ छोड़ जाती है 
भीड़ बाहर होती है और तनहा अंदर से होता हूँ
वैसे अच्छा ही किया 
जो छोड़ कर चली गयी हमको, 
सायद साथ होती भी तो, 
हम साथ नही होते,
इस वेरोजगार के सहारे कब तक रहती ?
एक दुसरे से कब तक आस करते ?
उस वक्त मै भले ही न समझ पाया 
पर मै चाहें जहाँ भी रहूँगा 
तुम सही थी ये हर बार कहूँगा |

क्या कहुँ कुछ कह नहीं पाता

क्या कहुँ कुछ कह नहीं पाता 

जो दिल में था वो तो हमने कब का कह दिया 
जाने कौन सा रॉकेट साइंस है जो उन्हें अब तक समझ नहीं आता 
सायद डरती है जमाने से सबको अहम् बनाती है 
जमाने का क्या?  जीने पर कद्र नहीं करते 
मरने के बाद दुनिया को अहमियत गिनाते है 
मै ये नही कहता कि तुम सिर्फ मुझे चुनो... 
पर तुम उसे चुनो जिसे तुम चाहती हो जिससे तुम्हे ख़ुशी मिले 
और ये सिर्फ तुम्हारा खुद का फैसला हो ...
वो जो तुम्हारा साथ दे , जहाँ तुम्हे जरुरत हो वहा अपना हाँथ दे।
तुम्हारी जिन्दगी तुम्हारी हो किसी का गुलाम क्यों बनना ?
सायद तुम बोलोगी, "कहना आसान है करना मुश्किल"... 
सही है आप... लेकिन नामुमकिन नहीं है,
पर आप उनसे  भी तो बात करो जिनको लगता है की आपकी ख़ुशी आपसे 
ज्यादा जानते और समझते है 
अगर आपकी ख़ुशी चुनने का हक़ उनको है तो 
आपकी ख़ुशी किसमें है? ये भी तो जानने का हक है 
और मारना ही होता तो पैदा ही क्यों करते ?
उन्हें भी तो मौका दो जानने का समझने का और मिलने का,
हो सकता है हमारी-तुम्हारी कास्ट अलग है पर है तो इंसान ही ना ?
अगर बाँटना ही है तो स्त्री-पुरुष और ट्रांसजेंडर में बाँट लो,
जिसको प्रकृति ने बनाया है, जिसको यही समाज एक उम्र के बाद 
साथ रहने की अनुमति देता है और अक्सर अपना निर्णय थोप देता है। 
अब भी तुम इस जात-पात से ऊपर उठ कर नहीं देखती तो 
उन रूढ़िवादीयो में और तुम में कोई ज्यादा अंतर नहीं है 
बल्कि तुम उनसे भी निचे स्तर की सोच रखती हो 
जो खुद के लिए भी अपना स्टैंड नहीं ले सकती, बेबस और लचार... 
एक राष्ट्र डिफेंस सौदा को समझने और समझौते में सालों साल लग जाते है
और हमारा - तुम्हारा रिस्ता कुछ लोगो की बातें और अधिकतम कुछ महीने के समय दे कर 
जिंदगी भर के लिए हम पर थोप दिया जाता है और सात जन्म साथ निभाने का वादा लिया जाता है 
हमारा जीवन इतना सस्ता है क्या ?
फिर तो इस से अच्छा मेरे हिसाब से मच्छर हैं 
जो खुद के लिए किसी का भी खून पी सकता है 
जबकि पैदा पानी में होता
जब तक भी उसका जीवन रहता है 
लोगो की नींद तक हराम कर देता है 
और अंत में लड़ते हुए  किसी के हाँथो की दोनों हथेलियों के बिच शहीद हो जाता है 
यार हम तो फिर भी इंसान है|
#whynot 

कही खो गया हूँ

 कही खो गया हूँ 

पहले तो तुझ में ही था ?
या तुमसा था ?
अब कुछ और हो चूका हूँ.
चाहत स्थिर है ... 
सपने सितारे बन गये 
कुछ है तो एक बंद मुट्ठी !
एक जेब जो कभी खोली नही,
एक तमन्ना जो सालों पहले टूट गयी 
कुछ है जो है अलौकिक 
रास्ते बंद है अब तक कुछ मिला नही,
न तुम हो !
और तुमसा कोई मिला नही 
सच में कही खो गया हूँ ?
या अब कुछ और हो गया हूँ ?
जिन्दगी पतझड़ सी दिख रही है 
यहाँ खड़ा हर सख्स ठुठा है 
रिश्ते जमीन पे पत्ते से गिरे पड़े है
इनमें पड़ा हर रिश्ता झुठा है  
एक  आस है मौसम बदलेगा 
फिर से बहार आ जाये 
ये सख्स जो अभी ठुठा है 
कही फिर से लहलहा जाये ...
क्या तुम भी वापस आओगी ?.. एक आश है... 
या सच में कही खो गया हूँ ?
या कुछ और हो गया हूँ ?

जाने कैसा वक्त है ?

  जाने कैसा वक्त है ? वक्त का पता भी नही चलता  सुबह होती है , साम होती है  जिन्दगी युही तमाम होती है  सोचता हूँ खुद में समाहित कर लूँ  या उन...