कही खो गया हूँ
पहले तो तुझ में ही था ?
या तुमसा था ?
अब कुछ और हो चूका हूँ.
चाहत स्थिर है ...
सपने सितारे बन गये
कुछ है तो एक बंद मुट्ठी !
एक जेब जो कभी खोली नही,
एक तमन्ना जो सालों पहले टूट गयी
कुछ है जो है अलौकिक
रास्ते बंद है अब तक कुछ मिला नही,
न तुम हो !
और तुमसा कोई मिला नही
सच में कही खो गया हूँ ?
या अब कुछ और हो गया हूँ ?
जिन्दगी पतझड़ सी दिख रही है
यहाँ खड़ा हर सख्स ठुठा है
रिश्ते जमीन पे पत्ते से गिरे पड़े है
इनमें पड़ा हर रिश्ता झुठा है
एक आस है मौसम बदलेगा
फिर से बहार आ जाये
ये सख्स जो अभी ठुठा है
कही फिर से लहलहा जाये ...
क्या तुम भी वापस आओगी ?.. एक आश है...
या सच में कही खो गया हूँ ?
या कुछ और हो गया हूँ ?
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