Monday, March 7, 2022

कुछ दोस्त बने कुछ पुराने थे,

 कुछ दोस्त बने कुछ पुराने थे, 

कुछ जो चले गये उनके अपने बहाने थे, 
सादगी, सोहार्द सब में पाए है, 
जो साथ है, उन्हें दिल से अपनाए है, 
तुम्हारी याद अब भी बहोत आती है, 
कि अक्सर ही तंग करती, कभी सताती है, 
कि पूछती है, कि वादें कहा  वो पुराने गये, 
कि छोड़ के जिसे तन्हा तुम निभाने गये, 
कि आया वक्त जुल्मी सब ढह गया, 
कि अभी जो दिख रहा बस यही रह गया, 
मौसम, साल बदला, सब सुहाने चले गये, 
जो खास थे एक वक्त में वो दोस्त पुराने चले गये, 
एक दोस्त मिली थी, तुम्हारे बाद भी, 
उनमे बातें भी तुम जैसी थी, 
थोड़ी सिरियस थोड़ी खुशमिजाज,
और मस्तीखोर मुझ जैसी थी, 
कुछ सोचा कुछ निकला, सब लहजा बदल गया, 
कुछ वक्त दिया साथ में, 
और फिर तुमसा तनहा छोड़ चला, 
फिर कही और चला, 
कही दूर सायद बहोत दूर चला... 
        
              



वक्त थम सा गया है,

 वक्त थम सा गया है, 

चाहत मरने लगी है, 
वास्तव में चाहत मरने लगी है, 
सपने जो देखे थे कभी, 
सपने देखने से भी डरने लगा हूँ, 
दिल चाहता है सब थम जाए, 
जो, जहाँ, जैसा है, बस रुक जाए, 
मै सुरुवात फिर से करूँ, 
या सबका अंत अभी हो जाए, 
सबका ना सही पर,
मेरा व् मुझ जैसो का अभी हो जाए, 
ना आँखें नम हो न सपने सुहाने, 
दिल टूटे और सब जर-जर हो जाए, 
जुड़े तो इस शर्त पर,
कर-कर के हम प्रखर हो जाए, 
और कुछ बने तो अपने दम पर, 
हो शून्य श्रम और शून्य से हमारा नाता हो, 
ये चाहत भी शून्य हो और शून्य ही हमारा खाता हो,
श्रम विश्राम कर हो अनंत अंत तक, 
परिणाम शून्य से संख महासंख हो अंत तक,
ये आरजू है अंत तक,
बस यही आरजू है अंत तक... 

दिल बेचैन है

 दिल बेचैन है 

शब्द कम पढते जा रहे है 
दिल भरा पड़ा है कुछ कहने को 
पर तुझसा कोइ मिला नही है 
ऊर्जा और जिम्मेदारी पिक पर है 
पर क्या करना है कुछ पता नही है 
एक तरफ घर और उसकी जिम्मेदारी है 
एक तरफ मेरे सपने और करियर जमीन पर पड़ा है 
छः बिंदु है छः दिशाएँ 
सबका जबाब एक है 
एक है भोला, एक है गोला 
गोला का अभिप्राय क्या है ? 




जाने कैसा वक्त है ?

  जाने कैसा वक्त है ? वक्त का पता भी नही चलता  सुबह होती है , साम होती है  जिन्दगी युही तमाम होती है  सोचता हूँ खुद में समाहित कर लूँ  या उन...