Monday, March 7, 2022

हे ! सुनो,

 हे ! सुनो, 

जाने कब से बात नही होती ?
तुम बदल रही हो ?
या मौसम का असर है ?
बात होती है पर उसमें कोई बात नही होती 
साथ होती तो हो तुम पर साथ नही होती 
मुझे याद है सुरुवात कैसे हुआ था 
तुम्हे देखा और सब कुछ ठहर गया था 
आँखे मिली और दिल सिहर गया था 
फिर बातों के कैसे अफसाने बनाये थे 
एक दुसरे के दिलो में आसियाने बनाये थे 
बस अपनी ही सुनते थे 
एक दूजे के धुन में रहते थे 
धरती से आसमा के सपने बुनते थे 
तुम साथ थी वक्त का पता भी नही चलता 
तुम जाती तब से 
तुम्हारे लौटने तक इंतजार करता था 
हर बात जो इतना गौर से सुनती थी 
मेरी छोटी से मजाक को हफ्तों बाद 
याद दिलाया करती थी 
सच में ये जान कर मै सहम गया था 
आज कितने दिन हो गये ?
अंदर ही अंदर कितना याद करते है 
पर बहार कही नही दिखती हो 

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